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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palआज का इंसा भीतर से टूट रहा है। बाहर से बिखर रहा है। समस्या सर्वांग समन्वय से संबंधित है। 'अंतर्मन की भावनाएं', 'कर्म' एवं 'वर्चुअल वर्ल्ड' के मध्य बैलेंस बनाना आवश्यक हो गया है। प्यार सबसे खूबसूरत अहसास के साथ-साथ रिश्तों के अस्तित्व की बुनियाद है। प्रो. गोगिया ज़िंदगी मिलेगी न दोबारा' में प्रेम की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत एवं दार्शनिकता को नये आयाम के साथ जीवन को आनंदमय बनाने का दृढ़ संकल्प लिये हैं । आप पुस्तक में पायेंगे कैसे प्रेम से आंतरिक शक्तियों का जागरण एवं विकास होता है। लेखक का मूल उद्देश्य है कि धरती के हर प्राणी के अंतःकरण को पवित्रता एवं सात्विकता प्रदान करना।
हर व्यक्ति में छिपी प्रतिभायें हैं। आप जो चाहें कर सकते हैं - पा सकते हैं एवं बन सकते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता वह चीज़ कितनी बड़ी है।
ईश्वर का बनाया ब्रह्मांड तो प्रचुरता का खज़ाना है। जब आप इसकी सत्ता को अपने अंतर्मन से महसूस करेंगे तो आप अपने लिये रोमांच एवं आनंद के द्वार खोल देते हैं। भाषा खरी चोखी है रचनाए प्रेरणा- स्त्रोत के साथ-साथ ईश्वर के पूर्ण उत्कृष्टता एवं एकता के साथ लिए हुए हैं ।
सुदेश गोगिया
21 सदी डिजिटल युग है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जीवन की पहचान नियंत्रित करनी लगी है। दारूण व्यथा में उलझ कर आज का इंसा मानसिक रूग्णताओं को आमंत्रित कर बैठा है।
चेतन एवं अचेतन मानस दोनों प्रभावित हो रहे है। ‘फेसबुक’, ‘व्हाट्सअप’ एवं 'स्मार्टफोन्स’ तकनीकी इत्यादि के जरिए हम संबंधों को आंकने लगे हैं। इस तकनीकि विकास से हम पूरी दुनिया से जुड़ तो अवश्य रहे हैं लेकिन पड़ोस एवं मित्रों की खबर नहीं रख रहे। आपसी संबंध जिस तेज़ी से बढ़ रहे है उसी तेज़ी से बिख़र और टूट रहे हैं।
प्रकृति से संबंध जोड़कर उसके आगोश में पेड़-पौधों एवं फूलों के मध्य योग, प्राणायाम एवं मेडिटेशन द्वारा न केवल टेंशन, स्ट्रेस दूर होती है, बल्कि जीवन उत्सवनुमां एवं सौहार्द से विकसित होता है।
प्रोफेसर सुदेश गोगिया खोजी हैं। जीवन के रहस्यों, संभावनाओं एवं संवेदनाओं का सतत अध्ययन किया है। खोजी मन की वेदना की एक गहरी अभिव्यक्ति के साथ फरमाते हैं ‘ मानव की चेतना का सबसे बड़ा शत्रु मन है और सबसे बड़ा मित्र भी मन है।’
अतीत एवं भविष्य के बीच झूल रही युवा पीढ़ी वर्तमान के लुत्फ़ से वंचित हो रही है। ऐसे में आपसी प्रेम मोहब्बत एवं गर्माहट से भरे रिश्तों की पुर्नव्याख्या करनी होगी! इस मायने में ' ज़िंदगी मिलेगी न दोबारा' एक सार्थक पुस्तक उभर कर सामने आई है।
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