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Kavita Bheetar Goonjey / कविता भीतर गूँजे। Thoughts / भाव

Author Name: Pooja Rajput | Format: Paperback | Genre : Poetry | Other Details

"कविता भीतर गूँजे.. गूँजे बारम्बार, चारों ओर अनुभव हूँ

करती मैं कविताओं की बौछार..."


“ताज़ा ओस की तरह प्रतिदिन भाव उत्पन्न होते हैं.. मैं

उन भाव रूप मोतियों की मालाएँ पिरो रही हूँ।धन्य हूँ कि

मैं धनवान हो रही हूँ…"

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पूजा राजपूत

नमस्कार।


आप सभी का स्वागत है पूजा की भावों की नन्ही सी दुनिया में। ये भाव बड़े ही बेशकीमती हैं, क्योंकि इनसे
जुड़े हैं पूजा के माता पिता, उनके संस्कार और हमारा भारत महान। हिंदी भाषा में कविताएँ लिखने में पूजा
की सदैव रुचि रही है। इनके हर भाव कविता के रूप में बाहर आते हैं।


पूजा भारत में दिल्ली शहर से हैं और इंग्लैंड में पिछले उन्नीस वर्षों से रह रहीं हैं। हिन्दी कविता लिखने के
साथ साथ नृत्य कला और बच्चों को नाट्य सिखाने में इनकी रुचि है.. जिसके माध्यम से बच्चों को उनकी
संस्कृति, भाषा, त्यौहार, व्यवहार एवं स्वयं के व्यक्तित्व विकास के प्रयास का अनुभव करने में पूजा उनकी
सहायता करती हैं।


कविता लिखने की प्रतिभा इनमें ईश्वर का वरदान रूपी एक बाण है।


“जब आँखों से कोई दृश्य सीधा दिल में उतर आता है, तब वह कविता के रूप में इनके भावों को सुसज्जित
कर लहराता है।”


अपनी मातृभूमि से दूर इन्होंने भी अपने भीतर एक नन्हा भारत बसाया है। पूजा अपनी कला के ज़रिये उस
भारत कोश में हर नए अनुभव एवं ज्ञान धन को भरने में जुटी रहतीं हैं, ताकि इनके भीतर बसे हिंद की नींव
की मज़बूती सदैव बनी रहे।


कला, मंच, कार्यक्रम, प्रस्तुति, प्रशंसा एवं प्रोत्साहन हर कलाकार की खुराक है। कल्पना दृष्टि में सजे मंच में
वे स्वयं को अकसर खड़ा पाती हैं। सामने श्रोताओं के बीच बैठे होते हैं इनके माता पिता, जिनको पूजा वे
अहम क्षण अर्पित करना चाहती हैं। विदेश में रहकर बड़े मंच का बस वे स्वप्न ही देख पाईं, किंतु देश से दूर
रहकर ही अपने लक्ष्य को वे समझ पाईं।


इनका लक्ष्य है हिंदी भाषा के प्रचार के चलते प्रेरणात्मक हिंदी कविताएँ लिखते रहना और विदेश

में विकसित अपने भारतीय मित्रों संग रचनात्मक कार्य कर औरों को भी प्रोत्साहित करना।


यह किताब इनके पूज्य पिता जी को उनके 70वे जन्मदिवस के उपलक्ष्य में एक उपहार स्वरूप एक छोटा सा
प्रयास है। यह केवल एक किताब नहीं बल्कि इनके जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों के अनुभव का सार है। दूर
देश बसी बेटी के मन के भाव कैसे होते हैं? अपनी संस्कृति और भाषा को साथ लिए वह कैसे आगे बड़ रही
है? चुनौतियाँ तो सभी के जीवन में हैं, किंतु कला के माध्यम से विदेश में अपनी बोली का प्रचार कर अपनी
एक पहचान बनाना भी सरल नहीं है। आप सभी से निवेदन है कि इनकी रचनाओं को अपना असीम प्रेम
देकर इनका हौसला बढ़ाएँ। आप सभी के साथ से ही इनमें आगे लिखते रहने की शक्ति स्वस्थ साँसें भरती
रहेगी।

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