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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palस्मृतियों की बगिया में जो संस्मरण के सुमन, सुवासित हुए हैं उन्होंने दीये का शाश्वत प्रकाश बनकर सदैव मेरी साहित्यिक यात्रा का पथ प्रशस्त किया है। स्मृतियों के ये दीपक पाठक को संवेदना से भर देंगे। कभी हंसाएंगे, कभी गुदगुदाऐंगे , तो कभी करुणा का झरना बनकर आंखों की कोर से झरेंगे। मेरे पति वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश गुप्त जी ने इस पुस्तक में 10 संस्मरण ही शामिल किए जाने की तैयारी कर दी थी पर, क्या पता था कि उनके कीर्ति शेष हो जाने पर वही इस संस्मरण संग्रह का हिस्सा बनेंगे। समय कभी निष्ठुर बनता है तो ,कभी बलवान बन कर मनमानी करता है। खैर उनकी अंतिम यादों को वे कोविड के दिन रात गुप्त जी के साथ शीर्षक से संजोया है
राहों के दीये बनकर कभी साहित्यकारों ने मुझे रास्ता दिखाया तो कभी मेरे विद्यालय के बच्चों ने तो कभी शिक्षकों ने। इतना तो तय है कि ये संस्मरण पाठक के मानस पटल को उल्लास से भर कर हृदय में जगह बनाएंगे। प्रत्येक संस्मरण का ताना-बाना जीवन की घटनाओं से बुना गया है जो पाठक के साथ तादात्म्य स्थापित करेगा। उसे कथा रस का आनंद भी मिलेगा। मेरा यह अटल विश्वास कितना सफल होता है यह तो पाठक ही बतलाएंगे। अब यह आपके हाथों सौंपती हूं, अपना प्रथम संस्मरण संग्रह "राहों के दीये-"----
डॉ सुधा जगदीश गुप्त
मध्यप्रदेश की पावन माटी पर 4 जुलाई 1954 को कटनी शहर में जन्मी डॉ सुधा गुप्ता 'अमृता' बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी प्रख्यात बालसाहित्यकार हैं। मध्यप्रदेश शिक्षा विभाग में कार्यरत रहते हुए उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन शिक्षा और विधार्थियों के लिए समर्पित कर दिया। अपने शैक्षिक सेवाकाल में रहते हुए उन्होंने अनेक नई नई शैक्षिक गतिविधियां शुरू की। गीत, कहानी, नाटक, चित्र, पॉकेट बोर्ड एवं प्रकृति के सान्निध्य में जुड़कर सीखने की गतिविधियां उनकी शिक्षा जगत में बेहद चर्चित रहीं। यही कारण है कि उन्हें जिला, संभाग, प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा विभाग द्वारा सम्मानित किया गया। सन 2015 में उन्हें महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कर कमलों द्वारा विज्ञान भवन दिल्ली में राष्ट्रपति सम्मान देकर पुरस्कृत किया गया। सेवाकाल में ही उनकी एक बहुचर्चित बाल गीतों की पुस्तक "ताकि बची रहे हरियाली" 2008 में प्रकाशित हुई जो सम्पूर्ण शिक्षा जगत एवं बाल साहित्य जगत में चर्चित हुई।
हिंदी के प्रति अगाध प्रेम और जुड़ाव के कारण ही सुधा जी ने हिंदी साहित्य में MA किया और अपने शोध कार्य का विषय: "स्वातंत्र्योत्तर बालकविता का अनुशीलन-मध्यप्रदेश के विशेष सन्दर्भ में " चुन कर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर से सन 2014 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उनकी लगन मेहनत और संघर्ष की परिणीति उनके शोध ग्रंथ "राष्ट्रीय फलक पर स्वातंत्र्योत्तर बाल कविता का अनुशीलन-मध्यप्रदेश के विशेष सन्दर्भ में" के रूप में हुई।
डॉ सुधा गुप्ता 'अमृता' जी की अब तक करीब 15 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। यद्यपि बड़ों एवं बच्चों दोनों के लिए उनका लेखन है किन्तु बाल साहित्य में उनका मन अब पूरी तरह समर्पित हो चूका है। बाल साहित्य की हर विधा में उनकी गहरी पैठ है। डॉ सुधा गुप्ता 'अमृता' जी के अनुसार बाल साहित्य की अनूठी परिभाषा दी गई है-"बाल साहित्य ही वह जीवन घुट्टी है जो बाल मन को पुष्ट कर उसे जीवन देने की कला सिखाता हुआ समस्याओं से जूझ कर निकल आने की कला सिखाता है।"
":बाल गीत , मध्यप्रदेश की बोलियों में बाल काव्य " शीर्षक से संकलन सुधा जी के सम्पादन में आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकेडमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद् भोपाल द्वारा प्रकाशित है।
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