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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palआप इस पुस्तक के माध्यम से जुड़ रहे हैं, बहुत बहुत धन्यवाद!
रेकी चिकित्सा पद्धति आपको अंतर शक्ति एवं मानसिक क्षमताओं का विकास कर रोगों का उपचार करने में सहायक है। यह अवचेतन मन को चैतन्य कर अनुभूति की गहराइयों में उतरने की निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसे कोई भी सीख सकता है।
रेकी पद्धति किसी भी चिकित्सा पद्धति का विरोध नहीं करती, बल्कि उपचार में सहायक होती है और इसका उपयोग अन्य पद्धतियों के साथ किया जा सकता है। रेकी हीलिंग सतत रूप से चलने वाली प्रक्रिया है जिसका विकास स्वयं के द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर निर्भर है तथा परिणाम व्यक्तिगत स्तर पर अलग-अलग हो सकते हैं।
यह पुस्तक रेकी के विभिन्न स्तरों के लिए आपको एक मार्गदर्शक के रूप में जानकारी प्रदान करेगी। इस पुस्तक के अंत में, आपके पास वह ज्ञान होगा जो आपको खुद पर, अन्य पर हीलिंग के लिए और अपने स्वयं के व्यक्तिगत विकास के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग करने के लिए आवश्यक है। आपके पास अपने परिचितों के साथ जुड़ाव प्रदर्शन करने की क्षमता भी होगी।
कृपया ध्यान दें कि आपको प्रत्येक स्तर से जुड़ी रेकी अट्युनमेंट अर्थात सुसंगतता प्राप्त करनी चाहिए। ध्यान रहे अट्युनमेंट (दीक्षा या शक्तिपात) प्रक्रिया आपके शरीर को ब्रह्मांड की ऊर्जा को प्राप्त कर रोगी के शरीर में प्रवाहित करने के योग्य बनाती है, जिसके अभाव में दिए गए प्रतीकों का उपयोग करने पर आपके स्वयं की ऊर्जा को रोगी के शरीर में प्रवाहित होने से घातक स्थिति पैदा कर सकती है । यह एक प्रभावी रेकी सहयोगी बनने का भी एक अभिन्न अंग हैं।
इस पुस्तक का अधिकांश भाग मूल रूप से उसी शिकी रेकी रयोहो चिकित्सा पद्धति पर केंद्रित है जिसे रेकी के प्रथम प्रचारक डॉ मिकाओ उसुई द्वारा औपचारिक रूप से बढ़ाया गया है।
संजीव शर्मा, मंजू वाशिष्ठ
संजीव शर्मा- कृष्ण की पावन लीला स्थली मथुरा (ओल) में जमीदार परिवार में जन्म, आगरा वि श्ववि द्यालय से स्नातक, क्रिया योग परम्परा के पांचवें गुरु श्री शैलेन्द्र शर्मा जी के शि ष्य एवं उनकी पुस्तक हठयोग प्रदीपि का कीयौगि क व्याख्या एवं गोरखबोध के हि न्दी अनुवादक, के न्द्रीय सेवा में सेवारत, प्राकृ ति क चिकित्स क, सुजोक एक्यूप्रे शर एवं आरिक्युलर चिकित्स क एवं रेकी ग्रां ड मास्टर।
मंजू वाशि ष्ठ- कृष्ण की पावन भूमि मथुरा में जन्म, नि वास कोटा राजस्था न। लाहिड़ी महाशय, परमहंस योगानंद जी द्वारा प्रचारित, क्रियायोग परम्परा के पांचवें गुरु श्री शैलेन्द्र शर्मा जी (गोवर्धन में वि राजि त) की शिष्या बनने कासौभाग्य प्राप्त हुआ। परिवार के सहयोग एवं लेखन अभि रुचि के चलते, सामाजि क, सांस्कृति क, स्वास्थ्य सम्बन्धी लेख विभि न्न समाचार पत्र, पत्रिकाओं में प्रकाशि त। आगरा युनि वर्सि टी से शिक्षा ग्रहण। प्राकृ तिक चिकि त्सा पद्धति एवं योग में डि प्लोमा एवं हीलि ग पद्धति से रेकी ग्रां ड मास्टर।
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