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Vivek SreedharAuthor of Ketchup & Curryइस फास्ट फॉरवर्ड समय में अरविंद की इस किताब से गुज़रना आपको एक तरह के थिर और चैनदारी से भर देता है। संगीत के गुणवंत और नामदार लोगों के बीच लगभग एक बच्चे के कौतुक से वे बातचीत कर पाते हैं पर बिना फोक़स खोये और आतुरता दिखाए। ये तसल्ली से किये गये संवाद हैं और बहुत जतन से शब्दचित्रों में संजोये गये, प्रसंग और संदर्भ के साथ। अरविंद की ये किताब एक खिड़की खोलती है, उन आवाज़ों के पीछे जो मनुष्य हैं, जो जिंदगियाँ हैं और उनके अपने सफरनामे हैं। एक लंबे सत्र के बाद आधी रात को पंडित जसराज से संगीत चिकित्सा के बारे में जानकारी हासिल करना या एक सूखी हुई झील में एक महापंडित द्वारा राग वरुण प्रिया के जरिये बादलों को बुलाना और बारिश में भीग जाना।
हैदराबाद में रहकर हिंदी अख़बार ‘मिलाप’ के लिए काम करने के दौरान अरविंद जिनसे साक्षात्कार करते हैं, उनमें हिंदुस्तानी शास्त्रीय और उत्तर भारतीय ही नहीं, बल्कि कर्नाटक और दक्षिण के गायक, वादक भी शामिल हैं। अरविंद के बहुभाषी होने का ये लाभ है कि वह भाषा, संस्कृति और संगीत की विविधता के बारे में सहज सजगता के साथ बातचीत कर पाते हैं। हर बड़े इंटरव्यू के पहले एक लम्बी प्रस्तावना लिखकर पहले पूरा संदर्भ स्पष्ट होता है। किताब में तमाम ऐसे भी इंटरव्यू हैं, जब सेलिब्रिटीज के निजी पीआर विषय, समय और हाईलाइट्स के लिए आग्रही कम थे। कुछ- कुछ थोड़ा जल्दी में लिए गये साक्षात्कार भी हैं, और कुछ पश्चिमी तौरतरीकों से प्रभावित गायकों से बातचीत भी है। इस किताब का हासिल हैं, मंगेशकर बहनों, पंडित जसराज, पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, कविता कृष्णमूर्ति से बातचीत। ये किताब न सिर्फ संगीत प्रेमियों के लिए एक खज़ाना है, बल्कि पत्रकारों के लिए भी एक अच्छी किताब है। ये जानने, समझने, गुनने के लिए कि फीचर्स और इंटरव्यू इतने प्यार और किस्सागोई की तर्ज पर लिखे जा सकते हैं।
निधीश त्यागी
अरविंद यादव
शब्दों को अर्थ और अर्थ को जिंदगी देने की प्रतिभा का नाम है डॉ. अरविंद यादव। वरिष्ठ पत्रकार और बहुप्रतिभा के धनी डॉ. अरविंद हमेशा से शब्दों से संवाद और संवाद से बेहतर समाज बनाने की पत्रकारिता के हिमायती रहे हैं। यही कारण है कि चाहे अखबार हो, टीवी हो या फिर डिजिटल मीडिया, पत्रकारिता के हर माध्यम के जरिए उन्होंने मानवाधिकार, समाज में दबे-कुचले लोगों की बात, राजनीति के स्याह रूप, सरकारों की कथनी-करनी में फर्क को दुनिया के सामने रखने की कोशिश की।
पत्रकारिता के मिशन में पिछले 24 वर्षों से वे देश के तमाम हिस्सों, खासकर दक्षिण भारत से जुड़ी हर छोटी-बड़ी, कही-अनकही, सुनी-अनसुनी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों से जुड़ी बातों को सबके सामने रखने में जुटे रहे हैं। अरविंद यादव इस बात में भरोसा रखते हैं कि नकारात्मकता की आयु बहुत कम होती है। इसी वजह से उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में समाज की उन सच्चाइयों को कहानियों में पिरोना शुरू किया जो सकारात्मक हैं। उनकी लेखनी की यारी ऐसे लोगों की कहानियों से होने लगी जिनकी शुरूआत घनघोर संघर्ष और मुश्किलों से हुई, पर जिनका बाद का हिस्सा काफी उत्साहवर्धक रहा। ऐसी कहानियों को आम लोगों तक पहुँचाने का मकसद सिर्फ एक है, समाज से नैराश्य खत्म हो, लोगों को काम करने की नई ऊर्जा मिले और देश का भविष्य उज्ज्वल हो।
हैदराबाद में जन्मे और पले बढ़े डॉ. अरविंद यादव के व्यक्तित्व में पूरा देश रचा-बसा है। डॉ. अरविंद यादव इन तीन भाषाओं-हिन्दी, अंग्रेजी और तेलुगु के जानकार हैं। समय और ज़रूरत के हिसाब से वे इन तीनों भाषाओं की जिम्मेदारियों को बदलते रहते हैं। हिन्दी साहित्य से पीएचडी की डिग्री हासिल करने के साथ-साथ उन्होंने क़ानून और मनोविज्ञान की भी पढ़ाई की है। पर हर पढ़ाई के पीछे उद्देश्य एक ही रहा-गरीब, लाचार और मुश्किल में जी रहे लोगों को मुख्य-धारा से जोड़ने की कोशिश। यही कारण है कि साहित्यिक लेखन से लेकर तमाम लेखकीय कार्य में कलमकार के तौर पर उनका योगदान अविस्मरणीय है। अलग-अलग विधाओं की उनकी अबतक 13 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। जीवनी-लेखक के तौर पर डॉ. अरविंद साहित्य जगत में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं।
डॉ अरविंद ने देश के नामी गिरामी मीडिया संस्थानों में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है। प्रिंट से लेकर इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया तक एक सामान रूप से उन्होंने अपनी बेहतरीन कार्यशैली का परिचय दिया है।
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