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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palस्याही के सुमन की शुरूआत काफ़ी मज़ेदार रहा है। इनके जीवन में दुखों की सुनामी ना आई होती तो स्याही के सुमन जन्मता ही नहीं। पाँच सितारा होटल से जेल यात्रा तक का सफर। महानगर की चकाचौंध से ढाई सालों का काल कोठरी प्रवास। ख़ुशियों के बसंत की बीच दुखों का सावन भादों। ज़िंदगी मानो तो इनका इम्तिहान ले रही थी। मानसिक रूप से अस्थिरता और जेल जीवन के लिए ख़ुद को सँभालना। अकेलापन निरंतर कुछ ना कुछ लिखने के लिए प्रेरित किया। मेरी पहली रचना जीवन का महत्व था जो पवित्र संदेश में प्रकाशित हुआ जिस में प्रभु येशु के महत्वों का उल्लेख किया हूँ। लोग बोलते है किसी भी शुभ कार्य के पहले प्रभु का स्मरण करना चाहिए। मेरी पहली रचना प्रभु की स्तुति थी। एक प्रयास है ज़िंदगी के खट्टे मीठे अनुभव, संवेदना, पीड़ा और उमंग को कविता के रूप में मेरी पुस्तक स्याही के सुमन में अलंकृत है।
बाल कृष्णा केशव
पटना, बिहार की राजधानी में पला बढ़ा। होटल प्रबंधन में डिप्लोमा। पेशे से ब्लू डायमंड रिज़ॉर्ट में शेफ और सामाजिक कार्यकर्ता हु। पंद्रह साल का होटल में अनुभव होने के साथ पढ़ने लिखने की रूचि बचपन से ही बनी रही। ज़िंदगी सुख दुख का सागर है। असमय ज़िंदगी में विपतियों का आगमन ने मेरे अंदर से लेखक और कवि को समय के साथ तराशा। पेशेवर ज़िंदगी से ढाई साल दूर समय के काल कोठरी में बंद था तो भाई अरुण और पत्रिका पवित्र संदेश का साथ मिला। मेरी रचना और कविता पवित्र संदेश (प्रभात प्रकाशन, दीघा, पटना) के माध्यम से प्रकाशित होती रहती है। नशा का नरक, कौन कहता है कि चमत्कार नहीं होता है, उभरते भारत में जो फूल खिल ना सके, समाज में बुजुर्गों का स्थान जैसे गंभीर सामाजिक मुद्दे पे अपने लेख के जरिये विचार रखता हु। भाषा सहोदरी न्यास, नई दिल्ली के माध्यम से विश्व हिन्दी सम्मलेन गोवा में शिरकत करने का अवसर मिला। उनकी पत्रिका में मेरे लेख और कविता को जगह मिली।
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