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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palप्रेम तथा भक्ति के रसों से सराबोर “स्वर वीथिका”, कुछ चयनित शब्दों के सरस समन्यव का एक प्रयास है ताकि स्वर उनके माध्यम से अपनी एक सुमधुर यात्रा सम्पूर्ण कर सकें। इस पुस्तक का आरम्भ 21 नामों के साथ भगवान श्री गणेश की आराधना में 5 दोहों से की गई है, तत्पश्चात, भगवान शिव की स्तुति उनके दिव्य 108 नामों के साथ की गई है, यह मूलतः भगवान शिव की नामावली ही है, जिसे एक क्रम दिया गया है। पुस्तक में कुछ भजन हैं, कुछ प्रेम और विरह गीत हैं, कुछ संदेशप्रद रचनाएँ हैं तो कुछ बस यूँ ही लिख दी गई हैं। स्वरों का स्वाद बदलने के लिए कुछ गजलें भी हैं, जो कि आशा है कि सभी का ध्यान अवश्य आकृष्ट करेंगी।
इस पुस्तक में रचनाओं के माध्यम से उठाए गए विषयों में प्रेम तथा विरह गीतों और भजनों के अतिरिक्त स्वतन्त्रता दिवस, महिला दिवस, ग्रीष्म, वर्षा और बसंत ऋतु, जल संचय, राजनीति, भूख, गरीबी, देहदान, मृत्यु, आत्महत्या, कोरोना, स्वच्छता, विज्ञान और बच्चों से संबन्धित रचनाएँ भी शामिल हैं, आशा है कि ये काव्यांजलि सभी लोगों को पसंद भी आएंगी।
मनोज कुमार श्रीवास्तव
श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव “कुमार” का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे उतरौला, जनपद- बलरामपुर (उत्तर प्रदेश) में 30 अक्टूबर सन् 1973 को हुआ था। उनके पिता श्री सीताराम श्रीवास्तव राज्य सरकार में कार्यरत रहे (वर्तमान में सेवानिर्वत्त), जबकि उनकी माता श्रीमति गीता देवी एक गृहणी है। एक बहन और चार भाइयों में सबसे बड़े श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव ने बैंकिंग को अपना रोजगार चुना और वर्तमान में देश के एक प्रतिष्ठित बैंक में कार्यरत हैं। श्री श्रीवास्तव को बचपन से ही लेखन का शौक रहा और उनकी विभिन्न कहानियाँ, कवितायें और आलेख विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित भी होती रही। इसके अतिरिक्त उनकी कई रचनाएँ आकाशवाणी आगरा से भी प्रसारित की गई। इस बीच उन्होने अपनी कुछ काव्य रचनाएँ “कुमार कार्तिक” के नाम से भी लिखी, जिन्हें काफी सराहना प्राप्त हुई।
वर्ष 2007 में श्री श्रीवास्तव की प्रथम पुस्तक “अवशेष” प्रकाशित हुई, जिसमें विभिन्न प्रष्ठभूमियों पर आधारित 15 कहानियाँ शामिल थी। यह पुस्तक काफी सफल रही और सभी के द्वारा इसे सराहना प्राप्त हुई। इनकी दूसरी पुस्तक “कुछ अपनी कुछ जग की” एक काव्य संकलन थी जो की वर्ष 2016 में प्रकाशित हुई थी, इस पुस्तक में उनकी सहेजी गई 82 काव्य रचनाएँ शामिल की गई थी। इसी कड़ी में उनकी तीसरी पुस्तक “स्वर वीथिका” जो कि उनकी 100 चयनित काव्य रचनाओं, जिनमें प्रेम तथा विरह गीत, भजन और गज़ल समाहित हैं, प्रकाशित की जा रही है। श्री श्रीवास्तव सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय रहते हैं और उनसे उनके ब्लॉग, फेसबुक अथवा ट्विटर के माध्यम से संपर्क कर अपने सुझाव और प्रतिक्रियाएँ दी जा सकती हैं।
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