कविता अपने आप में पूर्ण नहीं होती है, उसे पूर्ण बनाता है; पाठक! पाठक जब उसे पढता है, उस कविता के हर्फ़ दर हर्फ़ को अपने जीवन से जोड़ने की कोशिश करता है, अपने अनुभव मैं उसे ढूंढने की कोशिश करता है, उसे आत्मसात करता है, कविता तब ज्यादा सफल मानी जाती है।
कोई भी कविता सिर्फ शब्दों, वाक्यांशों, अक्षरों और वर्णमालाओं से नहीं बनती है, अपितु यह भावनाओं का एक जीवंत संग्रह होती है, जो कवि के अंत: से निकलकर पाठक के मन में समा जाती है|
मैं यकीन के साथ कह सकता