प्रेम के पहले चरण का स्पस्ट वर्णन है प्रिय यह

By Kunal kanth in Poetry
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प्रेम के पहले चरण स्पष्ट वर्णन है  प्रिय यह
बयार सा है रंगीन आसमां मन उत्सुकता में गीत कोई रच रही हैइस पल में जो दिख रही तुम नव सृजन का आरंभ है और क्या बोलूं तुम्हेये नशा अब चढ़ रहा है कोड्र सा समन तुम मेंतुम स्नेह मुझ पे बरसा रही हो ।
अबोध सा मैं पड़ा अब रात दिन गुजार रहा हूं भूख प्यास की नहीं ख़बरमैं तो ख़्वाबों में तुम्हारे सो रहा हूं नींद के आखरी चरण में शीश चूम तुम कर रही प्रेम श्वाश के आरोह अवरोह सेये स्पर्श में समझ रहा हूं प्रेम के पहले चरण का स्पष्ट वर्णन है  प्रिय यहबयार सा है रंगीन आसमां मन उत्सुकता में गीत कोई रच रही है इस पल में जो दिख रही तुम नव सृजन का आरंभ है कोड्र सा समन तुम मेंतुम स्नेह मुझ पे बरसा रही हो ।

मौन अवस्था में खड़ा पूछता हूं एक प्रश्न तुम्हेंखो जाओगी तुम कभी क्या करूंगा मैं बताओकिस ओर जा तुम्हें ढूंढूंना मिली तुम तो ये जीवन किस तः ले जाऊंअनगिनत है प्रश्न मेरे तुम कृष्ण बन सब उत्तर दे रही हो 
रात्रि का है अतिम पहरअंधकार का है कहर बड़ातुम चांद सी चमक रही हो मैं शिशु सा गोद में तुम्हारेतुम ममता में बह रही हो ।
प्रेम के पहले चरण का स्पष्ट वर्णन है  प्रिय यहबयार सा है रंगीन आसमां मन उत्सुकता में गीत कोई रच रही है इस पल में जो दिख रही तुम नव सृजन का आरंभ है और क्या बोलूं तुम्हे ये नशा अब चढ़ रहा है कोड्र सा समन तुम मेंतुम स्नेह मुझ पे बरसा रही हो ।कुणाल कंठ कामिल कवि

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