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Akulaahat / अकुलाहट

Author Name: Renu Prasad | Format: Paperback | Genre : Letters & Essays | Other Details

‘अकुलाहट’ जिसमें अधीरता है, व्यग्रता है ,घबराहट है और साथ में एक छटपटाहट और तड़प भी है |मन में सैंकड़ों सवालों के सांप रेंगते रहते हैं |उनके दंश पीड़ा भी पहुंचाते हैं पर विवशता ऐसी कि उनसे मुक्ति पाकर खुल कर सांस लेना संभव नहीं होता |कभी समाज रास्ता रोकता है तो कभी परिवार तो कभी परिवेश या रिश्तेदार |

 मन में भावनाओं का आवेग ,उफान उठता है लेकिन यह ज्वार मन की दीवारों से टकराकर वहीं उमड़-घुमड़ कर भँवर का रूप ले लेता है और धीरे-धीरे सैंकड़ों सवालों के साँप उसी भँवर में समा जाते हैं और रह जाती है सिर्फ घुटन |

कुछ इन्हीं भावों का मूर्त रूप है ‘अकुलाहट’ जो हमारी, आपकी किसी की भी हो सकती है | हम इंसान संवेदनशील हैं और संवेदनशील हैं तो अनपेक्षित परिवेश , उपेक्षित व्यवहार, ओढ़े हुए रिश्ते आदि हम पर अपना असर डालेंगे ही |ये हम पर नकारात्मक प्रभाव ही छोड़ते हैं |यही नकारात्मकता इस प्रकार मन में घर कर जाती है कि अंत में घुटन का रूप ले लेती है | यह घुटन दीमक की तरह धीरे-धीरे हमारे मन को कमजोर कर देती है |

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रेणु प्रसाद

हिंदी साहित्य जगत में एक प्रतिष्ठित साहित्यकार के रूप में अपनी पहचान बनाने वाली रेणु प्रसाद झारखंड प्रान्त के बोकारो स्टील सिटी की निवासी हैं |ये हिंदी साहित्य में एम. ए. हैं और यहाँ के प्रसिद्ध संत जेवियर्स विद्यालय में 35 वर्षों के शिक्षण कार्य का इन्हें अनुभव है | जीवन के प्रति सकारात्मक सोच रखने वाली रेणु प्रसाद की छः रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं ,जिनमें काव्य संकलन ‘अभिव्यक्ति मन की ..’ उपन्यास ‘नए सफ़र की ओर’  ‘चन्द्रमहल’ तथा प्रमिला (दो भागों में) और  कहानी संग्रह ‘कोई तो हमें थाम लो ’ हैं | इनकी हर रचना जीवन के नए रूप से हमारा परिचय कराती है | प्रस्तुत कहानी संग्रह ‘अकुलाहट’ इंसान मन की घुटन का जीवंत रूप  है |

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