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Dhoop Aur Chhaanv Ke Beech / धूप और छाँव के बीच

Author Name: Neha Tiwari | Format: Paperback | Genre : Poetry | Other Details

टोकरी भर रात लेकर, मैं चली अब चाँद लेने। 

“धूप और छाँव के बीच”  एक बहते समंदर की तरह है। इस किताब में आपको हर तरह की भावनाओं में डूबने और डूब कर किनारों पर आकर ठहरने का अनुभव मिलेगा। किताब में आप जैसे-जैसे गहराई में डुबकी लगाएँगे, तो कभी धूप में, कभी छाँव में और कभी धूप-छाँव के बीच ख़ुद को अपनी ही दुनिया में पाएँगे। कभी आप मुहब्बत में उड़ान भरते परिंदे, तो कभी बेवफ़ाई और विरह की प्यास से दम तोड़ते पपीहे-सा महसूस करेंगे। जैसे ही आपको लगेगा आपने पूरी दुनिया जीत ली है, वैसे ही एक नई ख़्वाहिश का जन्म होगा और आप फिर नींद से जाग उठेंगे। आप अपनी ख़्वाहिशों का कोई अंत न होने की वजह से फिर से हारा हुआ महसूस करेंगे। उसी बीच फिर एक पंक्ति आएगी, जो आपको कुछ पल के लिए मौन कर देगी। हर कविता की एक अपनी अलग ख़ुशबू और पहचान है। कुछ पन्नों पर आपको इस देश के आज़ाद होने के बाद भी महिलाओं पर हो रही तानाशाही की चीख़ें सुनाई देंगी, तो कहीं पर प्रकृति पर हो रहे अत्याचारों के ख़िलाफ़ बग़ावत की आग दिखाई देगी। हर पन्ने पर भावनाओं को बड़ी ही ईमानदारी और ख़ूबसूरती से तराशने की कोशिश की गई है, ताकि पाठक उसे ख़ुद से जोड़ पाए। साथ ही, आप बेहद बारीकी से महसूस कर पाएँगे बचपन के गाँव, पहाड़ों की वादियों से लेकर शहर तक का सफ़र और उस सफ़र का तजुर्बा...

 

यह बहते समंदर का एक एक ऐसा ठहराव है जो किसी ख़ानाबदोश को सरहद पार से आती तेज़ हवा के छूने से महसूस होता है और धीरे से बिना कुछ कहे निकल जाता है।

क्यों न इस पल अपनी मंज़िल की तरफ़ आगे बढ़ते हुए, आसमान के और क़रीब वाली दुनिया का एहसास “धूप और छाँव के बीच” राह में थोड़ा-सा ठहर कर महसूस किया जाए!

 

“ज़रा-सा ठहर जा राही 

चला है दूर तक तू।“ 

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नेहा तिवारी

नेहा तिवारी का बचपन और प्राथमिक-शिक्षा उनकी नानी जी के साथ रहते हुए उत्तरप्रदेश के फ़ैज़ाबाद ज़िले के एक गाँव में हुई है, जो कि उनकी जन्मभूमि भी है। उनके माता-पिता उनकी प्राथमिक-शिक्षा शहर में ही अपने साथ रहकर कराना चाहते थे, लेकिन जब वे मात्र 3 साल की थीं, तभी ज़िद कर अपनी नानी के साथ गाँव आ गईं और फिर शुरू हुई भारत की एक और बेटी की उड़ान की कहानी। 


व्यवसायिक तौर पर वे “माइक्रोसॉफ़्ट क्लाउड इंजीनियर” हैं और अभी मुंबई में कार्यरत हैं। अपने हर उतार-चढ़ाव की भावना को कोरे पन्नों पर तराशने की चाहत ने ही आज उनके इस पहले काव्यसंग्रह को जन्म दिया है।

वे धर्म और जात-पात से ऊपर मानवधर्म को मानती हैं और “इंसानियत ही हर इंसान का सबसे पहला धर्म होना चाहिए” इसी बात को वे लोगों तक पहुँचाना चाहती हैं।

उनका मानना है कि धरती पर मनुष्य को भेदभाव से परे उसकी क्षमताओं के अनुसार समान अधिकार मिलने चाहिए और इस विचारधारा को सिर्फ़ संविधान में ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत तौर पर भी अपनाया जाना चाहिए।

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