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Dwand / द्वन्द

Author Name: Shekhar 'Srajak' | Format: Paperback | Genre : Poetry | Other Details

ॐ नमः शिवाय।

द्वन्द भारतीय दर्शन शास्त्र के लिए कोई नवीन विषय नहीं है। उपनिषद, गीता आदि मनुष्य के आंतरिक द्वन्द का ही विदित रूप है। विरोधाभास से भ्रम की उत्पत्ति होती है एवं भ्रम से जिज्ञासा की, यह तो सर्वविदित है कि जिज्ञासा ही नवीनता को जन्म देती है फिर चाहे वह विज्ञान में हो अथवा दर्शन में। मनुष्य की प्रकृति ऐसी है की उसका अंतर्मन सदा किसी ना किसी द्वन्द में ही लिप्त रहता है, अनेकों बार उसके स्वयं के विचार स्वयं के चरित्र से भिन्न हो जाते हैं एवं परिस्थितियाँ इस प्रकार की आती हैं की उसे अपनी भावनाओं तथा धर्म में से किसी एक का चयन करता पड़ता है। इस स्थिति में उसे स्वयं अथवा समाज में से किसी एक का चयन करना होता है जो एक आंतरिक द्वन्द को प्रदर्शित करता है। ऐसी स्थिति में क्या उचित है व क्या अनुचित है, यह हमारा अंतर्मन भलीभाँति समझता है परंतु स्वयं के स्वार्थ को छोड़कर समाज के लिए चिंतन करना ही ईश्वर को मनुष्य से अलग करता है।अंतर्द्वंद की स्थिति सभी के समक्ष आती है भले मनुष्य हों अथवा ईश्वर, परंतु इस द्वन्द को विजित कर आप क्या निर्णय लेते है वह निर्णय तय करता है कि आप कौन हैं? इन्हीं द्वंदो को प्रदर्शित करने का प्रयास मैंने अपने इस प्रथम काव्य संग्रह से किया है।

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शेखर 'सृजक'

हिमांशु शेखर मिश्रा 'सृजक' एक ऐसे कवि हैं, जो स्वयं को एक दार्शनिक व पथिक बताते हैं। उन्हें ऐसे स्थानों को देखना पसंद है जहाँ लोगों का आवागमन कम हो एवं जो उन्हें विचार करने के लिए उपर्युक्त हो। अक्सर उनके मित्र उन्हें अधिक विचार करने वाला कहते हैं, परंतु उनके अनुसार यह विचार करने की क्षमता ही है जो उन्हें जीवन एवं संसार के विभिन्न पहलूओं में समझने में सहायता करती है। यह उनका प्रथम काव्य संकलन उन्ही विचारों की अभिव्यक्ति है।

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