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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal
इस्लाम एक एकेश्वरवादी धर्म है जो ईश्वर पर विश्वास करता है, जिसे ‘’अल्लाह’’ कहा जाता है| कब्रिस्तान में जाने के बाद सर्वप्रथम ‘वजू’, फिर अल्लाह की स्तुति, तत्पश्चात मृतक
इस्लाम एक एकेश्वरवादी धर्म है जो ईश्वर पर विश्वास करता है, जिसे ‘’अल्लाह’’ कहा जाता है| कब्रिस्तान में जाने के बाद सर्वप्रथम ‘वजू’, फिर अल्लाह की स्तुति, तत्पश्चात मृतक के लिए दुआ की जाती है|
इस उपन्यास के नायक, सनौली गाँव के एक गरीब, असहाय हामिद चाचा हैं| ये निःसंतान और काफी गरीबी अवस्था में जीवन यापन कर रहे होते हैं| दिन व दिन पर्याप्त खाना, दवाई, फल एवं अन्य आवश्यक सामग्रियों के लिये तरसते रहते| अपने-पराये कोई इन्हें पूछते तक नहीं थे, पर ये दोनों हमेशा एक दूसरे के लिये मरते रहे| खाना और दवाई के अभाव में चाची, एक दिन इस दुनिया को अलविदा कह चल देती है| चाचा मजबूर हो चाची को कब्र में दफनाकर, भूखे -प्यासे आजीवन उस कब्र के पास उसके लिये दुआ माँगते-माँगते, सदा के लिये ख़ुदा को प्यारे हो जाते हैं|
मैंने अपने स्वप्न और कल्पना को, मानवीय भावनाओं का वस्त्र पहनाकर एवं मानवीय रूप, आकार ग्रहण कराकर, ‘बेपनाह मोहब्बत‘ उपन्यास के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत है|
मैं न तो दार्शनिक हूँ, न ही दर्शनग्य, न ही मेरा अपना कोई दर्शन है, और न ही मुझे लगता है, कि दर्शन द्वारा मनुष्य को सत्य की उपलब्धि हो सकती है| ये केवल मेरे मन के प्रकाश का स्फुरण अथवा प्ररोह है, जिन्हें मैंने एक कहानी का रूप देने के लिए शब्द-मूर्त करने का प्रयास किया है| मैंने कल्पना के पंखों से उड़ने की मात्र कोशिश की है, पर कहाँ पहुँच पाई, ये तो आप लोग ही (जो प्रेरक के रूप में हर वक्त मेरे साथ हैं) बता सकते हैं|
अंत में, मैं इस भूमिका के रूप में, प्रस्तुत अपने विचारों, विश्वासों तथा जीवन मान्यताओं की त्रुटियों एवं कमियों के सम्बंध में अपने पाठकों से अग्रिम क्षमा माँगती हुई,
-तारा सिंह
इस्लाम एक एकेश्वरवादी धर्म है जो ईश्वर पर विश्वास करता है, जिसे ‘’अल्लाह’’ कहा जाता है| कब्रिस्तान में जाने के बाद सर्वप्रथम ‘वजू’, फिर अल्लाह की स्तुति, तत्पश्चात मृतक
इस्लाम एक एकेश्वरवादी धर्म है जो ईश्वर पर विश्वास करता है, जिसे ‘’अल्लाह’’ कहा जाता है| कब्रिस्तान में जाने के बाद सर्वप्रथम ‘वजू’, फिर अल्लाह की स्तुति, तत्पश्चात मृतक के लिए दुआ की जाती है|
इस उपन्यास के नायक, सनौली गाँव के एक गरीब, असहाय हामिद चाचा हैं| ये निःसंतान और काफी गरीबी अवस्था में जीवन यापन कर रहे होते हैं| दिन व दिन पर्याप्त खाना, दवाई, फल एवं अन्य आवश्यक सामग्रियों के लिये तरसते रहते| अपने-पराये कोई इन्हें पूछते तक नहीं थे, पर ये दोनों हमेशा एक दूसरे के लिये मरते रहे| खाना और दवाई के अभाव में चाची, एक दिन इस दुनिया को अलविदा कह चल देती है| चाचा मजबूर हो चाची को कब्र में दफनाकर, भूखे -प्यासे आजीवन उस कब्र के पास उसके लिये दुआ माँगते-माँगते, सदा के लिये ख़ुदा को प्यारे हो जाते हैं|
मैंने अपने स्वप्न और कल्पना को, मानवीय भावनाओं का वस्त्र पहनाकर एवं मानवीय रूप, आकार ग्रहण कराकर, ‘बेपनाह मोहब्बत‘ उपन्यास के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत है|
मैं न तो दार्शनिक हूँ, न ही दर्शनग्य, न ही मेरा अपना कोई दर्शन है, और न ही मुझे लगता है, कि दर्शन द्वारा मनुष्य को सत्य की उपलब्धि हो सकती है| ये केवल मेरे मन के प्रकाश का स्फुरण अथवा प्ररोह है, जिन्हें मैंने एक कहानी का रूप देने के लिए शब्द-मूर्त करने का प्रयास किया है| मैंने कल्पना के पंखों से उड़ने की मात्र कोशिश की है, पर कहाँ पहुँच पाई, ये तो आप लोग ही (जो प्रेरक के रूप में हर वक्त मेरे साथ हैं) बता सकते हैं|
अंत में, मैं इस भूमिका के रूप में, प्रस्तुत अपने विचारों, विश्वासों तथा जीवन मान्यताओं की त्रुटियों एवं कमियों के सम्बंध में अपने पाठकों से अग्रिम क्षमा माँगती हुई,
-तारा सिंह
स्वर्गविभा टीम द्वारा, स्वर्गविभा त्रैमासिक पत्रिका, दिसंबर 2023 अंक का प्रकाशन बड़ी प्रसन्नता का विषय है| यह पत्रिका विगत 20 सालों से नियमित रूप से, हर चार महीने पर प्रकशित होती आ रह
स्वर्गविभा टीम द्वारा, स्वर्गविभा त्रैमासिक पत्रिका, दिसंबर 2023 अंक का प्रकाशन बड़ी प्रसन्नता का विषय है| यह पत्रिका विगत 20 सालों से नियमित रूप से, हर चार महीने पर प्रकशित होती आ रही है| इसके प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य, देश-विदेश के हिंदी साहित्य प्रेमियों की प्रतिभा को, जन-जन तक पहुँचाना, और हिंदी का प्रचार-प्रसार करना है| इसमें लब्ध प्रतिष्ठित रचनाकारों की रचनायें, कहानियाँ, गज़लें, कवितायें आदि तो प्रकाशित होती ही हैं, इसके साथ ही नवोदित रचनाकारों की रचनाएँ, जिनमें समीक्षा, आलोचनात्मक लेख, आदि भी प्रकाशित होती हैं| जिससे कि नवोदित और लब्ध रचनाकारों की न केवल प्रतिभा का आदान-प्रदान हो सके, बल्कि एक दूसरे को परस्पर जानें भी|
‘त्रैमासिक स्वर्गविभा ऑन लाइन पत्रिका’ फिर एक बार आपके सम्मुख है| हमने आपकी ख्वाहिश को नजर रखते हुए,आपके इस पसंदीदा पत्रिका में,देश के बेहतरीन लेखकों,कथाकारों और ग़ज़लकारों क
‘त्रैमासिक स्वर्गविभा ऑन लाइन पत्रिका’ फिर एक बार आपके सम्मुख है| हमने आपकी ख्वाहिश को नजर रखते हुए,आपके इस पसंदीदा पत्रिका में,देश के बेहतरीन लेखकों,कथाकारों और ग़ज़लकारों की रचनाओं को एकत्रित कर प्रकाशित की है| इसे पढ़िये| यह आपको माशूक की अदाएँ,प्यार-मोहव्वत,साकी पैमाना,शमां परवाना,आशिक-काशूक के कई रंग से आपको रुबरू कराएगी,तो दूसरी तरफ,कहानियों में सामाजिक कुरीतियों,रुढ़िवादियों पर अपनी सशक्त लेखनी से कथाकारों ने कुठाराघात कर,अपने पाठकों को सामाजिक बुराइयों से अवगत कराया है|इन कथाकारों ने,अपनी कहानी के पात्र-पात्रियों को इतने प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है कि घटनायें आँखों के आगे सजीव हो उठती हैं,हर एक पात्र मानो बातें कर रहे हों|
हम आशा करेंगे कि हमारे अन्य अंकों की भाँति,पाठकों को यह प्रस्तुति भी पसंद आयेगी| आपके बहुमूल्य मश्विरे की प्रतीक्षा रहेगी|
‘ईद की रात’ शीर्षक उपन्यास, समाज को एक नई रौशनी देनेवाला उपन्यास है| ऐसा मैं दावे के साथ नहीं कह सकती, पर समाज की कुछ कुरीतियाँ, तथा रुढ़िवादियों पर चोट अवश्य है| हम जिसके साथ ज
‘ईद की रात’ शीर्षक उपन्यास, समाज को एक नई रौशनी देनेवाला उपन्यास है| ऐसा मैं दावे के साथ नहीं कह सकती, पर समाज की कुछ कुरीतियाँ, तथा रुढ़िवादियों पर चोट अवश्य है| हम जिसके साथ जिंदगी के सफ़र पर निकलने जा रहे हैं| उसे बिना देखे, आजमाए सफ़र का साथी चुन लेना, किसी भी तरह युक्तिसंगत नहीं होगा| माना कि पति-पत्नी, एक दूसरे का पूरक है| एक मस्तिष्क, तो दूसरा ह्रदय है| मस्तिष्क और ह्रदय एक दूसरे का पूरक होकर भी एक ही पथ से चलेंगे, ऐसा नहीं होता है|
माना कि जीवन के निश्चित बिन्दुओं को जोड़ने का कार्य हमारा मस्तिष्क करता है, पर इस क्रम से बनी परिधि में सजीवता के रंग भरने की क्षमता ह्रदय में ही संभव है|
‘ईद की रात’ मेरे उपन्यास के ग्यारहवें उत्थान का परिचायक है| इसमें उपन्यास का मुख्य नायक और नायिका, दोनों ही निम्न मध्यम श्रेणी परिवार से हैं| पहली मुलाक़ात में ही दोनों मन ही मन एक दूसरे पर अपनी जान छिड़कते हैं| दोनों के ही अन्दर युवा उमंगों और मचलते अरमानों के ढेव, सामान रूप से उठते हैं| पर हमारी पुरातन रूढ़ि-रीतियों तथा मध्यकाल से ही चली आ रही हमारी सामाजिक व्यवस्थाएं, दोनों के रास्ते अलग कर देते हैं| जिससे मुझे बड़ी पीड़ा हुई| दोनों के व्यक्तिगत सुख-दुखों एवं मानसिक ऊहापोहों को नवीण बोध की धरातल पर उठाने के साथ ही, जग-जीवन से भी नवीण बोध के धरातल पर उठाने के साथ, ही जग-जीवन से भी नवीण रूप से सम्बन्ध स्थापित करने की आकांक्षा मुझे ‘ईद की रात ‘ लिखने के लिए प्रेरित करने लगी थी| मैं अपने अनुभवों की आँच पर तपकर, अपने मन को नवीण रूप से, नवीण विश्वासों में ढालना चाहती थी| यह उपन्यास, ’ईद की रात’, इसी का परिचायक है|
‘नींद हमारी, ख़्वाब तुम्हारे’ के पात्र-पात्री के नाम काल्पनिक हैं, पर घटना मेरे अनुभव पर आधारित है| इसमें कहीं भी मेरी कल्पना की हवाई उड़ान, आपको नहीं मिलेगी| पर हाँ, घटना में रंग
‘नींद हमारी, ख़्वाब तुम्हारे’ के पात्र-पात्री के नाम काल्पनिक हैं, पर घटना मेरे अनुभव पर आधारित है| इसमें कहीं भी मेरी कल्पना की हवाई उड़ान, आपको नहीं मिलेगी| पर हाँ, घटना में रंग भरने की कोशिश मैंने अवश्य की है| मगर ऐसा करते, मैंने इस बात का पूर्णतया ख्याल रखा है, कि कहीं पर भी बेवजह रंग की अधिकता, या न्यूनता नहीं हो, साथ ही किसी भी पात्र-पात्री के साथ शब्दों का चयन करते वक्त बेइंसाफी न हो| जिनको जितना अधिकार प्राप्त है, उतना ही अधिकार मिले, उससे बंचित न रह जाये| इसके लिए, कहानी लिखने बैठने से पहले मैं अपना क्रोध, लोभ, इर्ष्या, दोस्ती, घृणा, तथा पीड़ा इत्यादि को अपने दिल से निकाल देती हूँ, जिससे कि इंसाफ करते, ये सभी इनके बीच दीवार बनकर खड़े न हो जायें और मैं स्वतंत्र होकर लिख सकूँ|
‘नींद हमारी, ख़्वाब तुम्हारे’, एक संतानहीन नारी की व्यथा, कथा है| उसकी व्याकुलता और उसके तड़पते दिल की विह्वलता है| कहानी के पूरी होने बाद, जब मैं इसे पढ़ी, तो मुझे महसूस हुआ कि कहानी के हर छोटे-बड़े पात्र आपस में बातें करते हैं| शब्दों में सजीवता आये, इसकी मैंने यथासंभव कोशिश किया है| पर इस कोशिश में, मैं कहाँ तक सक्षम हो पाई हूँ, यह तो आप पाठक ही बता सकते हैं| ऐसे मैं अपनी परख पर अधिक विश्वास नहीं करती|
जवानी की दहलीज पर खड़ी, अठारह वर्षीय ,स्वर्गविभा हिंदी पत्रिका,एक त्रैमासिक वेबसाईट पत्रिका है | हिंदी भाषा को वैश्विक साहित्य दर्जा प्राप्त है तथा हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा हो, इ
जवानी की दहलीज पर खड़ी, अठारह वर्षीय ,स्वर्गविभा हिंदी पत्रिका,एक त्रैमासिक वेबसाईट पत्रिका है | हिंदी भाषा को वैश्विक साहित्य दर्जा प्राप्त है तथा हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा हो, इसके लिए (स्वर्गविभा पर प्रकाशित
रचनाओं में से ) चुनी हुई उत्कृष्ट रचनाओं को,इस पत्रिका में सम्मिलित किया जाता है | इस विश्वास के साथ कि वैश्विक स्तर पर,हिंदी के पठन-पाठन पर इन रचनाओं का सकारात्मक प्रभाव पड़े |
उम्मीद है कि पिछले अंकों की भाँति ,यह अंक भी पाठकोपयोगी होगा |
डॉ. तारा सिंह की रचनायें सही मायने में, समाज का दर्पण हैं| जो पाठकों के दिलों पर ऐसी अमिट छाप छोड़ जाती है कि इनकी प्रत्येक रचना,पाठकों के लिए अविस्मरणीय बनकर रह जाती है|
‘तनहा स
डॉ. तारा सिंह की रचनायें सही मायने में, समाज का दर्पण हैं| जो पाठकों के दिलों पर ऐसी अमिट छाप छोड़ जाती है कि इनकी प्रत्येक रचना,पाठकों के लिए अविस्मरणीय बनकर रह जाती है|
‘तनहा सफ़र’ की मुख्य नायिका निर्मला, संपन्न परिवार में जन्मी एक युवती है, और वैसे ही धनी परिवार में उसका शादी होना निश्चित हुआ था, पर जाति-प्रथा की सड़ी-गली, जाल में उलझकर उसके माता-पिता सजातीय लड़के की खोज में उसकी शादी एक मध्यम वर्गीय परिवार में कर देते हैं| वहाँ वह किन-किन पीड़ाओं से होकर गुजरने के लिए बाध्य होती है? परिवार की रुढ़िवादी सोच, उसे कितना बेबस और लाचार बना देता है, इसी कथा पर आधारित, तनहा सफ़र, उपन्यास है| इसे पढ़ते समय कथानक के समस्त पात्र, किसी चलचित्र की भाँति पाठकों के आगे सजीव होकर बातें करने लगते हैं| साहित्य प्रेमियों को यह उपन्यास अवश्य पसंद आयेगा,ऐसा हमें विश्वास है|
यह उपन्यास, एक भारतीय विधवा नारी की टीस है, दर्द है, और कराह है| हमारे रूढ़िवादी समाज की कुरीतियों पर एक कुठाराघात है| हमारा समाज किस तरह, नारी को देवी, श्रद्धा, अबला, कल्याणी जैसे शब्
यह उपन्यास, एक भारतीय विधवा नारी की टीस है, दर्द है, और कराह है| हमारे रूढ़िवादी समाज की कुरीतियों पर एक कुठाराघात है| हमारा समाज किस तरह, नारी को देवी, श्रद्धा, अबला, कल्याणी जैसे शब्दों से संबोधित (जो अत्यंत प्राचीनकाल से चली आ रही है) कर, कभी पूजा की चीज बना दिया, तो कभी भोग्या और चल संपत्ति समझ लिया| ऐसे जननी नारी न होकर मात्र एक भोग्या बनकर रह जाती है| उसे एक निरीह पशु मानकर, उसका हाथ, जिसके साथ मर्जी, उसे पकड़ा दिया जाता है| इस उपन्यास को पढ़कर मन दर्द भावुकता से भर उठता है, आत्मा कराह उठती है|
डॉ. तारा, की सशक्त लेखनी को पाकर, कहानी का एक-एक पात्र जीवित हो-होकर बातें करते हैं| पुष्पा (कहानी की मुख्य पात्री)एक गरीब घर की, मगर देखने में बेहद सुन्दर युवती है| उसके माता-पिता द्वारा उसका विवाह, अपनी सड़ी-गली कुप्रथाओं के अनुसार, बचपन में ही कर दिया जाता है, औ जब वह मात्र आठ साल की होती है, अर्थात जब वह अपना कपड़ा भी ठीक ढंग से नहीं पहन पाती है| उसके पति की मृत्यु हो जाती है| एक अबोध के साथ, समाज का यह क्रूर मजाक आँखों में आँसू ला देता है|
डॉ. तारा की प्रत्येक रचना, आम भारतीय की जीवन शैली को प्रतिबिम्बित करती है| यह बेमिसाल पुस्तक ‘बासी फूल’ ज्वलंत विषय पर दिल को छू लेने वाली कहानी है|
स्वर्गविभा वेबसाईट पत्रिका पिछले अठारह सालों से, हिंदी जगत के सम्मुख, विनयावत भाव से समुपस्थित है| पत्रिका के दिसंबर 2022 के लिए संदेश देते हुए, मुझे अत्यंत प्रसन्नता की अनुभूति हो
स्वर्गविभा वेबसाईट पत्रिका पिछले अठारह सालों से, हिंदी जगत के सम्मुख, विनयावत भाव से समुपस्थित है| पत्रिका के दिसंबर 2022 के लिए संदेश देते हुए, मुझे अत्यंत प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है| हमेशा की तरह पत्रिका का यह अंक भी विश्व के विभिन्न देशों के हिंदी प्रेमियों, प्राध्यापकों, अनुसन्धानकर्त्ताओं एवं विद्वानों को अपने विभिन्न सोच के जरिये उनका मार्ग प्रशस्त करेगी| देश-विदेश के साहित्यकारों, ग़ज़लकारों और रचनाकारों की रचनाओं को, एक जगह एकत्रित कर, उन्हें अंतिम रूप देकर, पत्रिका में बाँधकर प्रकाशित करना, बड़ा कठिन और महत्वपूर्ण कार्य है, जिसे स्वर्गविभा पत्रिका करती आ रही है|
विगत दो साल कोरोना महामारी के कारण, यह कार्य अपेक्षाकृत बड़ा चुनौतीपूर्ण रहा, बावजूद यह पत्रिका, निर्विघ्न आप तक पहुँचती रही| कारण, स्वर्गविभा की यह कोशिश रही है कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्रसंघ की सातवीं आधिकारिक भाषा का दर्जा मिले| यह तभी संभव है, जब सभी हिंदी भाषा, भाषाई अनवरत चेष्टा करते रहें| कभी रुकें नहीं, क्योंकि रुकना, ही थक जाना होता है, और, एक थका आदमी, अपनी भलाई की बात नहीं सोच सकता| वह हिंदी की बात कैसे सोच सकता है, जिससे कि हिंदी को गति और प्रवाह मिलती रहे, हिंदी जगत और शेष विश्व के बीच एक सेतु का काम करती रहे|
मैं इस पत्रिका के प्रकाशन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से योगदान करने वालों का आभार प्रकट करता हूँ, और आगे भी इस सहयोग की आशा रखता हूँ| नए साल की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ|
स्वर्गविभा ऑन लाइन त्रैमासिक पत्रिका,जो 2011 से अनवरत अपने नये कलेवर के साथ प्रकाशित होती आ रही है,जिसके प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य,देश-विदेश में रचे-बसे सभी हिं
स्वर्गविभा ऑन लाइन त्रैमासिक पत्रिका,जो 2011 से अनवरत अपने नये कलेवर के साथ प्रकाशित होती आ रही है,जिसके प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य,देश-विदेश में रचे-बसे सभी हिंदी साहित्य प्रेमियों की साहित्यिक प्रतिभा को विकसित होने का सुअवसर प्रदान करना है| इसमें लब्ध प्रतिष्ठित लेखकों की रचनाएँ तो प्रकाशित होती ही हैं,परन्तु इसके साथ नवोदित लेखकों की कवितायें,कहानियाँ,गज़लें,एकांकी,संस्मरण,आलेख आदि भी प्रकाशित किये जाते हैं, जिससे उनकी सृजनात्मक क्षमताओं का विकास हो सके|
महान कथाकारों में एक, सशक्त लेखनी की धनी, डा. तारा सिंह की ‘सबीना की रुख़सती’ उपन्यास, एक माध्यम वर्गीय परिवार की कहानी है| इसके माध्यम से कथाकार ने, हमारी सामाजिक कुरीतियों, गलत
महान कथाकारों में एक, सशक्त लेखनी की धनी, डा. तारा सिंह की ‘सबीना की रुख़सती’ उपन्यास, एक माध्यम वर्गीय परिवार की कहानी है| इसके माध्यम से कथाकार ने, हमारी सामाजिक कुरीतियों, गलत सोच, अशिक्षा तथा रूढ़वादियों की तरफ ध्यान आकर्षित कर इन सामाजिक बुराइयों के पुष्परिणामों को उजागर किया है| वास्तव में, यह उपन्यास हमारे लालची सोच का आईना है| समाज में, व्याप्त लालच, और उससे उत्पन्न हुई समस्या के विस्तार का चित्रण है| पूरी घटनाओं को डा. तारा ने बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है| मुझे विश्वास है कि यह उपन्यास हमारे समाज को एक नई रोशनी देने में सक्षम होगा|
“माँझी, नैया ढूंढे किनारा”, यह उपन्यास रिश्ते के अनेक दिशाओं में, फैलने वाले प्रकाश की तरह, एक बहु संकेतिक उपन्यास है|नीता अपनी मोहब्बत को, आराधना की वेदी पर, रंजीत बाबू के लिए न
“माँझी, नैया ढूंढे किनारा”, यह उपन्यास रिश्ते के अनेक दिशाओं में, फैलने वाले प्रकाश की तरह, एक बहु संकेतिक उपन्यास है|नीता अपनी मोहब्बत को, आराधना की वेदी पर, रंजीत बाबू के लिए न्योछावर करने के लिए आतुर रहती है| उसकी हर साँस, मन्दिर की आरती की तरह अपने चहेते (रंजीत बाबू) पर समर्पित है| बावजूद उसे अपने मोहब्बत की बाँहों में रहने की आकांक्षी नहीं है| वह तो अपने असंख्य बन्धनों के बीच रहकर अपने मोहब्बत का स्वाद चखना चाहती है|
यह जानते हुए भी कि, वह किसी की पत्नी है, उसका प्यार विष्णुदेव जी हैं| उनके जीते जी, पर पुरुष की स्मृति भी अपने दिल में लाना पाप है, निंदनीय है|एक सच्ची आर्य नारी ऐसा कभी नहीं कर सकती, क्योंकि शादी के बाद प्रेम का अर्थ है, पति प्रेम!
पर नीता का मानना है, जब तक एक दूसरे के ह्रदय पर अधिकार नहीं, वैसा प्रेम जीवन-भार स्वरुप है| प्रेम में अगर प्रेम को खींचने की शक्ति नहीं है, तब यह एकतरफा प्रेम कैसा? प्रेम ईश्वरीय प्रेरणा है, इश्वरी संदेश है| प्रेम के संसार में आदमी बनाई सामाजिक व्यवस्थाओं का कोई मूल्य नहीं है| विवाह समाज के संगठन कि, केवल एक आयोजना है|
ज्यों सागर, विद्रुम के पेड़, सीपियाँ, दानाविध मछलियाँ तथा अन्य जल-जीव मन को मुग्ध करते हैं| वनों में पेड़ -पौधे, वेलें, वनस्पतियाँ, पल्लव, फल-फूल तथा हरियाली, हृदय को आनन्दित करती हैं| ह
ज्यों सागर, विद्रुम के पेड़, सीपियाँ, दानाविध मछलियाँ तथा अन्य जल-जीव मन को मुग्ध करते हैं| वनों में पेड़ -पौधे, वेलें, वनस्पतियाँ, पल्लव, फल-फूल तथा हरियाली, हृदय को आनन्दित करती हैं| हिम से आच्छादित पर्वत-शृंगों पर जब सूर्योदयकालीन तथा सूर्यास्तकालीन लालिमा पड़ती है, तो चित्त प्रसन्नता से गदगद हो जाता है| सूने आकाश में बादलों का घिर आना, रिमझिम कर बरसना, आँखों को मनोहर लगता है| त्यों घर-आँगन में बच्चों की चहचहाहट, खिलखिलाहट, उनके रोने -चिल्लाने की आवाज, हृदय कोने के सूने भाग में खुशियाँ भर देता है, जो हमें इतना कुछ देते हैं, जिससे कि हम अपनी सारी, व्यथा-कथा भूल जाते हैं| उनके लिये मुझे भी तो कुछ करना चाहिए| यही सोच मुझे बाल उद्यान लिखने के लिए, मेरे हाथ में कलम और कागज़ पकड़ा दिया, और मुझसे जो कुछ संभव हो पाया, वह सभी आपके समक्ष प्रतुत है| हमें जानती हूँ, मुझसे पहले भी अनेकों कवि विद्वान, लेखक इन बच्चों के लिये एक से एक सुन्दर कविता, कहानी लिख गए हैं| आज भी लिखी जा रही है, और कल भी लिखी जायेगी| यह तो एक सागर है, और मैं उस सागर जल के एक बूंद का सौवां नहीं, शायद हजारवां हिस्सा रहूँगी|
प्रतिपल इस स्वप्न संसार के सामने सत्य संसार को, असत्य कर समुद्र-फेन को फाड़कर, सुन्दरता, सुकुमारता और उन्मत्तता का संदेश देने वाले, इन नन्हें, मुन्नों के लिए, मुझे भी कुछ करना चाहिए, जिससे कि ये सपने, उनका पिंड छोड़ दें| वे जीवन की वास्तविकता, और उनके मूल्य को जान सकें| अपने पग ही नहीं, अपने कर, चक्षु, कर्ण, नासिका सभी को विराट रूप देकर, इस त्रिभुवन को ही नहीं, त्रिकाल का भी ओर-छोर माप सकें और इनके छोटे-छोटे हाथ, कल बड़ा होकर उपवन में खिली चमेली के फूल को, ऊँचे पर्वतों पर से उतार सकें|
भावना की सजीव मूर्ति, डॉ. तारा सिंह का साहित्यिक परिचय जितना दिया जाय, वह उतना आयाम लेगा, कि आसमान की ऊँचाई और चंद्रमा की कलाएँ फीकी पड़ जायेंगी | आज साहित्याकाश की आत्मा बनकर सौर मं
भावना की सजीव मूर्ति, डॉ. तारा सिंह का साहित्यिक परिचय जितना दिया जाय, वह उतना आयाम लेगा, कि आसमान की ऊँचाई और चंद्रमा की कलाएँ फीकी पड़ जायेंगी | आज साहित्याकाश की आत्मा बनकर सौर मंडल पर, इनकी कुल पैंतालिस कृतियाँ सुशोभित हैं, जिनमें कविता-संग्रह,ग़ज़ल संग्रह,उपन्यास, कहानी -संग्रह,निबंध सरिता आदि सम्मिलित हैं | ‘क्या याद करूँ’, डॉ. तारा के साहित्याकाश का चौथा तारा है , जिसका शब्द, शिल्प, भाव, भाषा और अंतरवेदना की सृष्टि अत्यंत सूक्ष्म ,बारीक और हृदयहारी है | जो बाहरी और भीतरी ,दोनों ही उपादानों से युग संघर्ष को प्रतिस्थापित करता है | इसमें जरा भी संशय नहीं कि उपन्यासकार ,डॉ. तारा ने इस उपन्यास की रचना अंतरगता के एकांत धरातल पर गढ़ा है |
डॉ. तारा का यह उपन्यास, आपसी रिश्ते के चटकते डोर की एक ऐसी कहानी है, जिसका दूसरा कोई मिसाल संभव नहीं है | इसमें रिश्ते के जितने रूप , जितनी आकृतियाँ और जितनी उपमा-उपमाएँ, जितनी विषयपरक और आत्मगत संवेदनाएँ हैं ,जितने बिम्बों और जितनी आनुभूतिक जिजीबिषामय उक्तियों से रचनाकार ने अभिव्यक्ति प्रदान की है, वह सिद्ध करती है, कि यह उपन्यास देश और राष्ट्र की परिधि में समाकर नहीं रह सकता | क्योंकि इस उपन्यास को रचनाकार ने कहानी के शब्दों को अपनी धारणा, स्मरण आदि मानसी वृतियों से ऐसा संरक्षण प्राप्त है , जिसकी छाया में रहकर, यह उपन्यास, प्रसिद्धि की चोटी, पर राम की उम्र लेकर मानव समाज में,सदा ही जिंदा रहेगा |
डॉ. तारा की ग़ज़ल –पुस्तक, ’बज़्म-ए –हस्ती‘, जो आप, हम, तथा समाज और विश्व पर आधारित है| यूँ कह सकते हैं, कि बज़्म-ए-हस्ती, मानव समूह से जुड़ा हुआ एक जीवन यात्रा है| यह पुस्तक, प्यार, मोहब
डॉ. तारा की ग़ज़ल –पुस्तक, ’बज़्म-ए –हस्ती‘, जो आप, हम, तथा समाज और विश्व पर आधारित है| यूँ कह सकते हैं, कि बज़्म-ए-हस्ती, मानव समूह से जुड़ा हुआ एक जीवन यात्रा है| यह पुस्तक, प्यार, मोहब्बत, आशा, निराशा और दर्द की भावना पर आधारित है, जो प्रत्यक्ष व यथार्थ न होकर भी सच्चाई की ओर इशारा करती है| जैसे इनकी एक ग़ज़ल है:
“रूह कालिब में दो दिन का मेहमान है
कफस में बंद ज्यों शौके गुलिस्तान है”
इनकी ग़ज़लें प्यार-मोहब्बत की महत्ता में सूने आसमान की काल्पनिक उड़ानें भरी हैं, तो कभी अँधेरे से टकराती हुई, सूरज की रोशनी तक को अपनी सहेली बनाई हैं| जिसे युग की सार्थकता से हम इनकार नहीं कर सकते| जहाँ तक मेरा विश्वास है, इनकी ग़ज़लें एहसास की उस दुनिया से भी हमारी मुलाक़ात करने में सक्षम हैं, जिसे लोग अपना स्तित्व और दुनिया कहते हैं|
डॉ. तारा, इस ग़ज़ल-संग्रह में, हमें अपनी ग़ज़लों द्वारा उन रंगों से भी परिचय कराने की भरपूर कोशिश की, जिसमें पूर्ण रूपेण सफल भी हुई हैं, जिसमें शहर- गाँव, धूप-छाँव, आँधी-तूफ़ान, रिश्ते-नाते की मंजरनामा भी है| डॉ. तारा का मानना है, ग़ज़ल, लोक-भावना और लोक-नाद का दर्पण और बेवसी की चित्कार होती है, जो सुंदर शब्दों में ढलकर फड़कती है| इसके साथ ही ग़ज़ल, भूली- बिसरी यादों और वादों की नोवेल होती है, जिसमें मिस्री घुली प्रेम की बातें भी होती हैं|
इनकी ग़ज़लों को पढ़ते वक्त, कभी- कभी तो ऐसा महसूस होता है, इनमें से कुछ ग़ज़लें, डॉ. तारा के निज दर्द और उदासी की भावनाओं पर आधारित हैं|
सब मिलाकर, डॉ. तारा की बेमिसाल लेखनी की मार्मिकता और भावुकता, से भरी हर ग़ज़ल, सजीव हो उठती है| गज़लकार तारा को ऐसी ग़ज़ल-संग्रह, हम पाठकों को पढ़ने देने के लिए, अनेकों धन्यवाद!
छायावादी कवयित्री, डॉ. तारा सिंह द्वारा रचित काव्य-संग्रह, “मधुरिमा”, अद्भुत रूप से समृद्ध और अभिव्यक्ति संपन्न है|इसकी काव्यभाषा में गहरी अनुभूति सम्पन्नता और रोमांसलता का
छायावादी कवयित्री, डॉ. तारा सिंह द्वारा रचित काव्य-संग्रह, “मधुरिमा”, अद्भुत रूप से समृद्ध और अभिव्यक्ति संपन्न है|इसकी काव्यभाषा में गहरी अनुभूति सम्पन्नता और रोमांसलता का एक सांस्कारिक तेवर विद्यमान है| इसमें कोई शक नहीं कि डॉ. तारा, भाषा संक्षिप्तता और बिम्बात्मक क्षमता का मर्म पहचानने में निपुण हैं| इनकी कविताओं में अनुभूतियों की भीतरी झनझनाहट ह्रदय-मन को हिलाकर रख देती है| करुणा का आवेश और शब्द का स्पर्श पाते ही, शब्द-शब्द बोल उठता है| मधुरिमा में संग्रहीत जितनी भी कवितायें हैं, सब के सब सार्थकता की गुंज से भरी हुई हैं| डॉ. तारा की कवितायें परम्परा और आधुनिकता की आंतरिक लय के भीतर से गुजरती हुई, मानव समाज की अस्मिता को रूपायित करने का भागीरथ प्रयत्न हैं, जो मानव जीवन –संघर्ष को एक बृहत्तर अर्थ देती हैं|
मैंने देखा, इन रचनाओं में भौतिक, आध्यात्मिक, दोनों दर्शनों से जीवनोपयोगी तत्वों को लेकर, जड़-चेतन सम्बन्धी एकांगी दृष्टिकोण का परित्याग कर, व्यापक सक्रीय सामंजस्य के धरातल पर, एक भरी-पूरी मानवता का निर्माण करने की कोशिश की गई है, जो आज के नवयुग के लिए सर्वोपरि आवश्यकता है|
जीवन दर्शन के अलावा और जिन वस्तुओं की ओर लेखिका का ध्यान आकृष्ट हुआ है, वह है, गरीबी के क़दमों तले कुचले जाते, मजबूर इंसान की आहें, जिसे पढ़कर बरबस ही पाठक का मन मार्मिकता और भावुकता से भर उठता है| सामाजिक कुरीतियाँ और विषमतायें, अपनी कविताओं द्वारा उजागर करती, लेखिका द्वारा रचित यह कविता-संग्रह एक उत्कृष्ट साहित्य है| हमारे समाज को ऐसे साहित्य की ही आवश्यकता है, जिसे पढ़कर, हमारी आनेवाली नई पीढ़ी, देश, समाज की स्थिति को समझ सके|
तारा जी लिखित उपन्यास, ‘दूसरी औरत’ को पढने के बाद ऐसा महसूस होता है कि यह कहानी, घटना मात्रका वर्णन नहीं है, बल्कि समय काल की मनोवृति के बाहरी और भीतरी, दोनों ही उपादानों, करुणा-
तारा जी लिखित उपन्यास, ‘दूसरी औरत’ को पढने के बाद ऐसा महसूस होता है कि यह कहानी, घटना मात्रका वर्णन नहीं है, बल्कि समय काल की मनोवृति के बाहरी और भीतरी, दोनों ही उपादानों, करुणा- त्याग, भक्ति से प्रतिस्थापित होती हुई प्रतीत होती है| इसमें लोक जीवन के जातिवाद तथा ऊँच-नीच के कलुष पंक को धोने के लिए नवमानस की अंतर पुकार है, तो अंत:करण को संगठित करने वाला मन, चित्त, बुद्धि और अहंकार जैसे अवयवों का सामंजस्य भी है|
लेखिका ने अपनी कल्पनाओं को नव-नव उपमाओं द्वारा उसे सजीव रूप प्रदान करने के लिए पंख देती है, जिसमें पूर्णरूपेण सफल भी हैं| यह कहानी एकाकी नहीं है| इसका स्वर, इसकी रचना, अंतरंगता की एकांत धरातल पर हुई है, जो कि कहानी को मुखर कर देता है| सौन्दर्यबोधतथा ऐश्वर्य की दृष्टि से यह उपन्यास सर्वोत्क्रुष्ट और चमत्कारिक सृजन है| इसे पढ़ते वक्त चरित्र सजीव हो उठता है| धर्म, नीति, दर्शन आदि सिद्धांतों से परिपूर्ण किरदारों के आपसी संवाद कानों में घुलने लगते हैं| लेखिका एक कुशल स्वर्णकार की भाँति प्रत्येक दृश्य को समय, काल और परिस्थिति के अनुकूल, नाप-तौलकर, काट-छाँटकर, कुछ नए गढ़कर, अपनी सूक्ष्म भावनाओं में अपनी कोमलतम कलेवर दिया है|
डॉ. तारा यह मानती है कि समाज के सर्वांगीण विकास के लिए पुरुष हो या नारी, दोनों को जीने का सामान अधिकार चाहिए, क्योंकि राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के प्रत्येक क्षेत्र में, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन तभी आ सकता है, जब पुरुष और नारी, दोनों शिक्षित हो| इस उत्कृष्ट उपन्यास को पढ़कर, मुझे महसूस होता है, कि यह उपन्यास भविष्य में विश्व कथा-साहित्य की धरोहर बनेगी |
स्वर्गविभा वेबसाईट पत्रिका का यह उन्नीसवां अंक है | यह पत्रिका अनेकों लेखकों एवं चिंतकों का एक गुलदस्ता है | इस वर्ष यह कार्य अपेक्षाकृत अधिक दुष्कर एवं चुनौतीपूर्ण रहा | कारण को
स्वर्गविभा वेबसाईट पत्रिका का यह उन्नीसवां अंक है | यह पत्रिका अनेकों लेखकों एवं चिंतकों का एक गुलदस्ता है | इस वर्ष यह कार्य अपेक्षाकृत अधिक दुष्कर एवं चुनौतीपूर्ण रहा | कारण कोविद 19 ने हर क्षेत्र की गतिविधियों को प्रभावित किया है | तथापि इस संक्रामक रोग से उत्पन्न तनावपूर्ण स्थितियों के बावजूद सठीक समय पर यह अंक निकल सके , हम इसका प्रयास करते रहे , और आप लोगों के पूर्ण सहयोग से यह अंक आपके समक्ष है |
कल करे जो आज कर , आज करे सो अब
पल में परलय होयेगी, बहुरि करोगे कब
संत कबीर के इस छोटे से दोहे में, समय के सदुपयोग की चेतावनी तो छिपी है ही | इसमें जीवन दर्शन का महत्वपूर्ण सार भी छिपा हुआ है |
'निबंध सरिता' यानि 'निबंधों की नदी' हिंदी साहित्य में 40 लोकप्रिय पुस्तकों के लेखक और प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. तारा सिंह द्वारा संकलित दूसरी निबंध-पुस्तक है। हर भाषा को सदियों से सा
'निबंध सरिता' यानि 'निबंधों की नदी' हिंदी साहित्य में 40 लोकप्रिय पुस्तकों के लेखक और प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. तारा सिंह द्वारा संकलित दूसरी निबंध-पुस्तक है। हर भाषा को सदियों से सामाजिक सोच के बदलते तरीके के साथ-साथ सांस्कृतिक परिवर्तनों से भी जूझना पड़ता है। हम उन्हें मध्यकालीन युग का इतिहास और उसके बाद वर्तमान युग का इतिहास कह सकते हैं। निबंध-पुस्तकें मानव समाज की सभ्यता और संस्कृति के साथ-साथ जीवन के तरीकों को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण परिवर्तनों का विवरण प्रस्तुत करती हैं जो युगों से होते हैं। किसी विशेष क्षेत्र/देश में प्रचलित धर्म और समुदाय विभिन्न महासागरों, पहाड़ों, पहाड़ी क्षेत्रों, ठंडे और बर्फीले क्षेत्रों, प्राकृतिक संसाधनों और सीमाओं से घिरे होने के कारण एक अलग इकाई के रूप में अपनी मान्यता को गौरवान्वित करते हैं।
‘’सुचरिता’’ कहानी-संग्रह, डॉ. तारा सिंह की कहानी चेतना की सातवीं उत्थान की परिचायिका है| इनमें कुल सोलह कहानियाँ हैं, जो परम रहस्यमय तथा चमत्कारिक होन
‘’सुचरिता’’ कहानी-संग्रह, डॉ. तारा सिंह की कहानी चेतना की सातवीं उत्थान की परिचायिका है| इनमें कुल सोलह कहानियाँ हैं, जो परम रहस्यमय तथा चमत्कारिक होने के साथ-साथ सुख-दुःख के अनेकों रंग समेटे हुई, आँधी-धूप-वर्षा को झेलती हुई खेतों में मिलती है, तो कृषक के खलिहान में भी, पाकशाला की अग्नि पर तपते हुए पात्र में भी| इनका मानना है कि अनावश्यक बातें भी अनाहूत तमाशबीनों के सामान स्थान घेर लेते हैं, जिससे उसके अर्थप्रभाव में अवरोध भी उत्पन्न हो सकता है| इसलिये कहानीकार को इन सब बातों से बचना चाहिए, क्योंकि कहानी का सृजन करना, मानव के जितने भी सृजन हैं, उनमें सबसे अधिक रहस्यमय सृजन है| इसमें अंत:करण का संगठन करने वाले सभी अवयव, मानचित्त, बुद्धि और अहंकार एक साथ सामंजस्यपूर्ण स्थिति में कार्य करते रहे हैं| इनके संरक्षण के बिना,मनुष्य के बौद्धिक तथा संवेदनजन्य संस्कार पानी पर खींची लकीर के समान मिट जाते हैं|
डॉ. तारा की कहानियों को पढ़ने के बाद लगता है, ये गढ़ी नहीं गई हैं, बल्कि घटित हुई हैं; कालप्रवाह का वर्षों में फैला हुआ, चौड़ा-पाट उन्हें एक दूसरे से कहीं मिलने नहीं देता| परंतु विचार में उनकी स्थिति एक नदी तट से प्रवाहित दीपों के समान है| कुछ कम गहरी मंथरता के कारण उसी तट पर ठहर जाते हैं, कुछ समीर के झोंके से उत्पन्न-तरंग-भंगिमा में पड़कर दूसरे तट की दिशा में वह चलते हैं, तो कुछ बीच-धार की तरंगाकुलता के साथ एक अव्यक्त क्षितिज की ओर बढ़ जाते हैं| परन्तु दीपदान देने वाले उन्हें अपने अलक्ष्य छाया में एक रखते हैं| ताराजी को भी अपनी कहानियों पर एक ऐसी आस्था है| ईश्वर! इनकी आस्था बनाए रखे|
‘दीप शिखा’ कहानी-संग्रह को पढने के बाद मुझे प्रतीत हुआ कि मानव जीवन के दुःख-दैन्य के कारण-बीज अधिकतर हमारी पुरातन रूढ़ि-रीतियों तथा मध्य युगीन सामाजिक व्यवस्था में है | ‘उधार
‘दीप शिखा’ कहानी-संग्रह को पढने के बाद मुझे प्रतीत हुआ कि मानव जीवन के दुःख-दैन्य के कारण-बीज अधिकतर हमारी पुरातन रूढ़ि-रीतियों तथा मध्य युगीन सामाजिक व्यवस्था में है | ‘उधार का दूध’ ,’उसने पीया है जहर’, ‘शरणार्थी’, ‘मरणोत्सव’ आदि रचनाओं के अलावा, और व्यापक स्वरुप के दर्शन ‘छोटी-बहू’ में मिलते हैं | दीपशिखा, लेखिका की नवीण साधना का आशीर्वाद है | कला के कोमल फेन का मूल्य मानवीय संवेदन के स्वस्थ सौन्दर्य से अधिक है | यह मैं नहीं मानती, क्योंकि कला के अनेक रूप हैं , जिनसे वह मर्म को स्पर्श करती है | ‘फ़तेह सिंह’ शीर्षक कहानी की कुछ पंक्तियाँ, कल्पना एवं अलंकरणों रहित होकर भी अपनी कलात्मक क्षमता रखती हैं | लेखिका का यथार्थ, सामाजिक जीवन के साथ संघर्ष करता हुआ,विकासशील, आशा-क्षमतापूर्ण मनुष्य को आगे बढ़ानेवाला व्यापक यथार्थ है | इसमें लोक- मांगल्य के नव अंकुरित बीज मिलते हैं |
एक ओर जहाँ, कुछ नये रचनाकारों की नई-नई कहानियाँ अपनी प्रयोगवादी सीमाओं को अतिक्रमण करने के प्रयत्न में , नवीन मानव मूल्यों की खोज में सामाजिक चेतना की वास्तविकता के घनत्व से हीन, एक भयानक शून्य में जहाँ भटक गई हैं | उनकी मानवता तथा लोक-मांगल्य से दूर का भी संबंध नहीं एवं मांगल्य की कसौटी पर कहीं से भी खड़ा नहीं उतरता |
उर को ‘सू-ए-चमन’ (एक बड़े बगीचे के दौरे) पर जाने दें, जहाँ आप "हुस्न", "प्यार", "मोहब्बत" और "आशिक" के कई रंगों के साथ आयेंगे| वहाँ आपको जीवन के पहलुओं की एक झलक मिलेगी| "बेफिक्री", "मौज" और
उर को ‘सू-ए-चमन’ (एक बड़े बगीचे के दौरे) पर जाने दें, जहाँ आप "हुस्न", "प्यार", "मोहब्बत" और "आशिक" के कई रंगों के साथ आयेंगे| वहाँ आपको जीवन के पहलुओं की एक झलक मिलेगी| "बेफिक्री", "मौज" और चमकदार रोशनी आपके दिल में "नयाब" और खुशबू की एक माला प्रवेश करने के लिए वहाँ मौजूद होगी| अगर आप अन्यमनस्क हैं तो आप को "नसीहत" आपको चेतावनी देने के लिए उपस्थित होगी|
डॉ. तारा सिंह की ग़ज़लें, जीवन का एक विशाल खजाना हैं| ईमानदारी से, "रूहानियत", ताना, "वतनपरस्ती", "मैकदा" जो आपके दिल को बेफिक्र रूप से कंपित करेगा, एक खुली किताब की तरह जीवन का हर पहलू आपके सामने होगा| हालांकि बगीचों में फूल बढ़ते हैं, लेकिन गुलदस्ते की तैयारी, माली के कौशल पर निर्भर करती है| "नफासत", "नजाकत", "तहजीब", रिवाज और मिठास डॉ. तारा सिंह की गजलों के समानार्थी हैं| एक बार जब आप उनके माध्यम से जाते हैं, तो आपको पता चलेगा कि आपने अपना समय बर्बाद नहीं किया है|
"शेर-ओ-शायरी" के लिए तारा जी का लगाव उसके बचपन से ही शुरू होता है| पुस्तक में 84 ग़ज़लें हैं| यद्यपि मैं दावा नहीं करता हूँ, पर मुझे विश्वास है कि जैसे ही आप इन गजलों के माध्यम से जाते हैं, "नयाब" (नये), गुलदस्ते के रूप में फूल, लाल, हरे, नीले, पीले रंगों के रंग से सजाये गये हैं, जिसे आप देखते ही बोलने के लिए मजबूर होंगे, "क्या खूब है, सू-ए-चमन!"
प्यार, प्रकृति, त्याग और आत्मार्पण का यह उपन्यास, ‘जिन्दगी,बेवफा मैं नही’, डॉ. तारा सिंह की एक ऐसी कृति है, जिसका मिसाल नहीं| इनकी रचनाओं में रम्यता के प्रति, चाहे वह प्रकृति के प
प्यार, प्रकृति, त्याग और आत्मार्पण का यह उपन्यास, ‘जिन्दगी,बेवफा मैं नही’, डॉ. तारा सिंह की एक ऐसी कृति है, जिसका मिसाल नहीं| इनकी रचनाओं में रम्यता के प्रति, चाहे वह प्रकृति के प्रति हो अथवा शरीर के भावुक आकर्षण हों, होश गंवा देनेवाली आवेगमयता और मिलने की आतुरता रहती है| लेखिका ने इस उपन्यास के लिए, अपनी कल्पना-उद्यान से अलग-अलग भाव से चुन-चुनकर रंगीन और सादे सुगंध वाले, निर्गंध मकरंद से भरे हुए, तथा पराग में लिपटे हुए,सभी तरह के कुसुमों को एकत्रित किया है|
इस उपन्यास में,रचनाकार का सादगी भरा व्यक्तित्व,नवीण सौन्दर्य बोध, अनूठी बिम्ब-योजना, चित्रात्मकता, ललित कल्पना शब्द-अर्थ के चमत्कृत संयोगों और रम्याद्भूत तत्वों के साथ प्रयोग अभिभूत कर देता है| सब मिलाकर डॉ. तारा द्वारा रचित यह उपन्यास, अगर मैं कहूँ, कि यह भव्य रचना,यथार्थ धरती और स्वर्ग दोनों का नैसर्गिक स्वर है, तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी| कथा के आरम्भ से अंत तक, प्रकृति को जितनी छबियोँ, जितनी आकृतियोँ, जितने उपमा-उपेक्षाओं और आत्मगत संवेदनाओं, जितने बिम्बों और उक्तियों से अभिव्यक्ति प्रदान की है, किसी और की रचनाओं में मिलना असंभव रहता है|
कहते हैं, एक रचनाकार,संसार से दृष्टि हटाकर, जब व्यक्ति पर ध्यान देता है, तब वह शांत में अनंत का दर्शन करता है, और उसे भौतिक पिंड में असीम ज्योति का आभास होता है, जो कि पूर्ण सफल साहित्यकार का लक्षण है| तारा सिंह में ये सभी गुण विद्यमान हैं| यह एक सामाजिक उपन्यास है, इसमें मरुस्थल में भटकती हुई निराशा है, तो प्रेम से उत्पन्न बेवफाई भी है| मेरा आग्रह है, कि आप इसे खुद पढ़कर देखें, और आंकलन करें|
'सिसकती मोहब्बत' प्रसिद्ध भाषाविद, डॉ तारा सिंह द्वारा लिखित तीसरा सफल उपन्यास है। यह हमारे समाज में प्रचलित पारिवारिक जीवन के दोनों सत्य के साथ-साथ काल्पनिक पहलुओं से संबंधित
'सिसकती मोहब्बत' प्रसिद्ध भाषाविद, डॉ तारा सिंह द्वारा लिखित तीसरा सफल उपन्यास है। यह हमारे समाज में प्रचलित पारिवारिक जीवन के दोनों सत्य के साथ-साथ काल्पनिक पहलुओं से संबंधित है। कोई सामान्य दुःख की प्राप्ति की अनुभूति में भिन्न हो सकता है, जबकि दूसरा इसे हल्का लेता है। दूसरे के दिल को जला दिया जाता है;यहाँ तक कि दिल और दिमाग एक दूसरे के पूरक नहीं हैं। पति और पत्नी (जैसे कि उपन्यास में विवेक और रज्जो की तरह) कई अवसरों पर उनके संबंधित विकल्प, राय और दृढ़ विश्वास भिन्न होते हैं। हालांकि दिमाग हमारे जीवन के निश्चित बंधनों में शामिल होने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, दिलों को जीवन को खुशी और रूमानी बनाने के लिए प्यार के प्रवाह की सुविधा प्रदान करता है।
‘दीप शिखा’ कहानी-संग्रह को पढने के बाद मुझे प्रतीत हुआ कि मानव जीवन के दुःख-दैन्य के कारण-बीज अधिकतर हमारी पुरातन रूढ़ि-रीतियों तथा मध्य युगीन सामाजिक व्यवस्था में है | ‘उधार
‘दीप शिखा’ कहानी-संग्रह को पढने के बाद मुझे प्रतीत हुआ कि मानव जीवन के दुःख-दैन्य के कारण-बीज अधिकतर हमारी पुरातन रूढ़ि-रीतियों तथा मध्य युगीन सामाजिक व्यवस्था में है | ‘उधार का दूध’ ,’उसने पीया है जहर’, ‘शरणार्थी’, ‘मरणोत्सव’ आदि रचनाओं के अलावा, और व्यापक स्वरुप के दर्शन ‘छोटी-बहू’ में मिलते हैं | दीपशिखा, लेखिका की नवीण साधना का आशीर्वाद है | कला के कोमल फेन का मूल्य मानवीय संवेदन के स्वस्थ सौन्दर्य से अधिक है | यह मैं नहीं मानती, क्योंकि कला के अनेक रूप हैं , जिनसे वह मर्म को स्पर्श करती है | ‘फ़तेह सिंह’ शीर्षक कहानी की कुछ पंक्तियाँ, कल्पना एवं अलंकरणों रहित होकर भी अपनी कलात्मक क्षमता रखती हैं | लेखिका का यथार्थ, सामाजिक जीवन के साथ संघर्ष करता हुआ,विकासशील, आशा-क्षमतापूर्ण मनुष्य को आगे बढ़ानेवाला व्यापक यथार्थ है | इसमें लोक- मांगल्य के नव अंकुरित बीज मिलते हैं |
एक ओर जहाँ, कुछ नये रचनाकारों की नई-नई कहानियाँ अपनी प्रयोगवादी सीमाओं को अतिक्रमण करने के प्रयत्न में , नवीन मानव मूल्यों की खोज में सामाजिक चेतना की वास्तविकता के घनत्व से हीन, एक भयानक शून्य में जहाँ भटक गई हैं | उनकी मानवता तथा लोक-मांगल्य से दूर का भी संबंध नहीं एवं मांगल्य की कसौटी पर कहीं से भी खड़ा नहीं उतरता |
डॉ. तारा, हिंदी साहित्य जगत की एक सफल कथाकार हैं | इनकी बेमिसाल लेखनी के माध्यम से , जब किसी गरीब ,बेवश की आहें फूटती हैं , तब पाठक का मन दर्द से कराह उठता है | कथानक के समस्
डॉ. तारा, हिंदी साहित्य जगत की एक सफल कथाकार हैं | इनकी बेमिसाल लेखनी के माध्यम से , जब किसी गरीब ,बेवश की आहें फूटती हैं , तब पाठक का मन दर्द से कराह उठता है | कथानक के समस्त पात्र और घटनाएँ काल्पनिक होने के बावजूद, सजीव होकर बातें करने लग जाती हैं | सामाजिक कुरीतियों और विषमताओं को उजागर करती, डॉ. तारा ने, ‘समीरा’ को एक मानवीय रूप ग्रहण कराकर आप पाठकों के समक्ष रखने की कोशिश की है | इस कहानी-संग्रह में कुल उन्नीस छोटी-बड़ी कहानियाँ हैं | इन्हें पढ़ने से ऐसा महसूस होता है, ‘ये सभी कहानियाँ गढ़ी नहीं, बल्कि घटित हुई हैं | काल-प्रवाह में वर्षों से फैला हुआ चौड़ा पाट इन्हें एक दूसरे कहीं नहीं मिलने देता, परंतु विचार में उनकी स्थिति एक नदी तट से प्रवाहित दीपों के समान है| कुछ कम गहरी मन्थरता के कारण,उसी तट पर ठहर जाती हैं, कुछ समीर के झोंके से उत्पन्न-तरंग-भंगिमा में पड़कर दूसरे तट की दिशा में बह चलती हैं , तो कुछ बीच-धार की तरंगाकुलता के साथ एक अव्यक्त क्षितिज की ओर बढ़ जाती हैं | परन्तु दीपदान देनेवाले उन्हें अपनी अलक्ष्य छाया में एक रखते हैं | यही विश्वास डॉ. तारा का भी है |
छोटी बहू शीर्षक कहानी में लेखिका, आज के रिश्तों के गिरते स्तर पर दुखी होकर कहती हैं, ‘कभी इस समाज में श्रवण कुमार और भगवान राम जैसे पुत्र-रत्न भी जनम लिए, जिन्होंने अपने जीवन का हर सुख ,अपने माता-पिता के चरणों में समर्पित कर दिया |’ बीतते युगों के साथ रिश्ते भी बदल और अब तो रिश्ते के सिरे में खून की जगह पानी बहने लगा | ‘लांछन’ शीर्षक कहानी में नारी उत्पीड़न एवं शोषण,उन सीमाओं को लाँघती प्रतीत होती है , मानो नारी नहीं, कोई निरीह पशु हो | कुल मिलाकर समीरा एक उत्कृष्ट कहानी-संग्रह है |
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